पेइ श्वेइ का युद्ध

पेइ श्वेइ का युद्ध

“पेइ श्वेइ का युद्ध”एक सैन्य कहानी है, इसे चीनी भाषा में“”(bèi shuǐ yī zhàn) कहा जाता है। इसमें“पेइ”का अर्थ है पीठ, जबकि“श्वेइ”का अर्थ है पानी, यहां नदी का मतलब है। “यी”का अर्थ है एक, और“चान”का अर्थ है युद्ध और लड़ाई।“पेइ श्वेइ का युद्ध”का अर्थ आम तौर पर निकलता है कि नदी को अपने पीछे रखकर शत्रु के साथ जीवन-मरण की लड़ाई लड़ना, मतलब है कि शत्रु को हराने का पूरा प्रयास करना है, वजह है पीछे हटाने का रास्ता नहीं है।

यह युद्ध आज उत्तर चीन के हपेई प्रांत की चिंग शिंग (jǐng xíng) कांउटी में हुआ, तो इसे चिंग शिंग का युद्ध कहा जाता है।

ईसा पूर्व 206 में चीन के प्रथम एकीकृत सामंती राजवंश छिन का पतन हुआ। देश का इतिहास एक नए दौर से गुजरने लगा। राजसत्ता छीनने के लिए तत्काल की दो शक्तिशाली सेनाओं के नेता यानी शी-छु राज्य के राजा श्यांग-यु (xiàng yǔ) और हान राज्य के राजा ल्यू पांग (liú bāng) के बीच युद्ध छिड़ा।

दोनों के बीच का युद्ध करीब पांच सालों तक चला। इस दौरान ल्यू पांग की सेना यानी हान राज्य की सेना के सेनापति हान शिन (Hán Xìn) ने असाधारण युद्ध कला और सामरिक प्रतिभा का परिचय दिया। चिंग शिंग नाम के स्थान पर हान और चाओ सेनाओं में हुआ। युद्ध हान शिन की सामरिक प्रतिभा की एक मिसाल थी।

हान शिन

ईसा पूर्व 204 के अक्तूबर में हान शिन के कमान में हान सेना की एक नव गठित दस हजार लोगों की टुकड़ी लम्बा सफ़र तय कर उत्तरी चीन के थाई हांग (tài háng) पर्वत से गुज़र कर शी-छु राजा श्यांग-यु के अधीनस्थ चाओ राज्य पर हमला करने गई। चाओ राजा श्ये (xiē) और उसके सेनापति छन-यु (chén yú) के पास दो लाख सैनिकों की एक विशाल सेना थी, जो थाई हांग पर्वत के एक दर्रे चिंग शिंग नामक स्थान पर तैनात थी और हान शिन की सेना के विरूद्ध निर्णायक युद्ध करने के लिए तैयार थी।

चिंग शिंग हान सेना के लिए चाओ राज्य की सेना पर हमला करने जाने का एकमात्र रास्ता था, जहां भू-स्थिति खतरनाक और जटिल थी। वहां से गुज़रने के लिए मात्र सौ किलोमीटर लम्बा संकरा मार्ग मिलता था। यह स्थिति हमला करने वाली विशाल सेना के लिए अत्यन्त प्रतिकूल थी और प्रतिरक्षा की सेना के हित में थी।

युद्ध से पहले चाओ राज्य की सेना ने चिंग शिंग दर्रे पर कब्जा कर रखा था और ऊंचे पहाड़ पर अपना मजबूत मोर्चा बनाया था। उसकी सैन्य शक्ति भी तगड़ी थी और लम्बा मार्च करने की ज़रूरत भी नहीं थी। युद्ध जीतने की प्राथमिकता चाओ राज्य की सेना के हाथ में थी। चाओ सेना पर हमला करने आई हान शिन की सेना के पास केवल दस हजार सैनिक थे, वे भी लम्बा मार्च कर बहुत थके हुए थे, इसलिए हान शिन की सेना कमजोर और प्रतिकूल स्थिति में थी।

युद्ध से पहले चाओ सेना के सलाहकार ली च्वेच्यु (lǐ zuǒ jū) ने सेनापति छन-यु को यह सलाह दी कि दर्रे के सामने आ पहुंची हान शिन की सेना के हमले को रोकने के लिए अपनी मुख्य टुकड़ी तैनात की जाए। साथ ही पीछे के रास्ते से एक छोटी टुकड़ी भेजकर हान शिन की सेना के अनाज आपूर्ति रास्ते को काट दे और दोनों तरफ़ उस पर धावा बोले, इस रणनीति से हान शिन को जिन्दा पकड़ा जा सकता है। लेकिन सेनापति छन-यु युद्ध कला में एक रूढ़िवादी था, उसे अपनी शक्तिशाली सेना पर अंधा विश्वास था और पीछे की ओर दुश्मन पर हमला करने का विरोधी था, इसलिए उसने ली च्वेच्यु के अच्छे सुझाव को ठुकरा दिया।


युद्ध में चतुर हान राज्य की सेना के सेनापति हान शिन को मालूम था कि दोनों सेनाओं की शक्ति काफ़ी फर्क है, यदि सामने से सीधे चाओ राज्य की सेना के मोर्चे पर चढ़ाई की जाय, तो हान राज्य की सेना निश्चय ही परास्त होगी। सो उसने चिंग शिंग दर्रे से बहुत दूर एक जगह पर अपनी सेना तैनात की और वहां की भू-स्थिति और चाओ राज्य की सेना के विन्यास का बारीकी से विश्लेषण किया। हान शिन को जब यह खबर मिली कि चाओ सेना के सेनापति छन-यु हान सेना की शक्ति को बड़ी उपेक्षा की नजर से देखता है और जल्दी से युद्ध जीतने के लिए उतावला है, तो उसने तुरंत अपनी सेना को चिंग शिंग दर्रे से 15 किलोमीटर की दूरी पर तैनात कर दिया।

आधी रात के समय, हान शिन ने दो हजार सैनिकों को हान सेना का एक झंडा लिए रात के अंधेरे की आड़ में पहाड़ी पगडंडी से चाओ राज्य की सेना के शिविर के बगल में भेजकर घात में लगाया। हान शिन की योजना थी कि अगर दूसरे दिन युद्ध छिड़ा, चाओ सेना शिविर से लड़ाई के लिए बाहर आई, तो मौके का लाभ उठा कर ये दो हजार सैनिक चाओ सेना के शिविर में प्रवेश कर चाओ सेना के झंडों की जगह हान सेना के झंडे फहराएंगे। इसके बाद हान शिन ने और 10 हज़ार सैनिकों को नदी के पास भेजा। सैनिकों के पीछे नदी है, अगर युद्ध में हारे, तो पीछे नहीं हटा सकते। चीनी युद्ध कला में नदी के पीछे रहकर लड़ाई करना बहुत खतरनाक बात है, आम तौर पर ऐसी स्थिति में सैनिकों की हार के बाद मौत होती है। छन-यु हान शिन की इस प्रकार की तैनाती के बारे में जानकर ज़ोर से हंसा, उसने कहा कि हान शिन को युद्ध कला मालूम नहीं है, अपनी सेना के लिए हटाने का रास्ता नहीं रखा, वह जरूर खत्म होगा।

दूसरे दिन, हान शिन के कमान में हान राज्य की सेना खुले तौर पर चाओ सेना की ओर बढ़ने लगी, जब चिंग शिंग दर्रे के पास आ पहुंची, तो एकदम सुबह हो गयी। चाओ सेना के सेनापति छन-यु ने अपनी सभी सैन्य शक्ति को एकत्र कर हान शिन की सेना पर हमला बोला। दोनों सेनाओं में घमासान लड़ाई हुई, लेकिन देर तक हार जीत तय नहीं हो पाई।

इसी बीच चाओ सेना के शिविर में बहुत कम संख्या में सैनिक पहरे के लिए छोड़े गए थे, शिविर के बगल में घात लगाकर बैठे हान शिन के दो हजार सैनिकों ने तुरंत चाओ सेना के शिविर में धावा बोला और वहां हान सेना के झंडे फहराए, फिर ढोल बजाते हुए हुंकार करते रहे।


दर्रे के पास घमासान लड़ाई में चाओ सेना ने अचानक देखा कि उसके शिविर में हर जगह हान सेना के झंडे फगराए गए हैं, तो उसमें बड़ी घबराहट मची और मोर्चा भी ध्वस्त हो गया। हान शिन ने मौके पर दुश्मन पर जवाबी हमला बोला और चाओ राज्य की दो लाख सैनिकों वाली विशाल सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया, चाओ का सेनापति छन-यु युद्ध में मारा गया और चाओ राजा ज़िंदा पकड़ा गया।

युद्ध की विजय की खुशियां मनाने के समारोह में कुछ सैन्य अफ़सरों ने सेनापति हान शिन से पूछा:“युद्ध कला के ग्रंथों में कहा गया कि पर्वत को पीछे रखकर या नदी को आगे रखकर सैनिकों की तैनाती की जा सकती है, लेकिन आपने नदी को सैनिकों के पीछे रख दिया और कहा था कि विजय पाकर हम खुशियां मनाएंगे। उस समय हमें विश्वास नहीं था। लेकिन अंत में हमें विजय मिली। आपने क्या रणनीति बनायी?”

सेनापति हान शिन ने मुस्कराते हुए कहा:“यह उपाय युद्ध कला के ग्रंथों में लिखा गया है। शायद आप लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया हो। युद्ध कला ग्रंथों में कहा गया कि सबसे खतरनाक स्थिति में फंस कर भी रास्ता निकल सकता है”नदी के पीछे रहकर हमारे सैनिकों के लिए भागने का कोई रास्ता नहीं था, जीतने के लिए उन्हें पुरज़ोर कोशिश करनी थी।

“पेइ श्वेइ का युद्ध”शीर्षक कहानी चीन में कहावत के रूप में इस्तेमाल की जाती है। इसका इस्तेमाल अधिकतर सैन्य कार्रवाइयों में किया जाता है। इसके साथ ही निर्णायक लड़ाई वाली कार्रवाई में भी प्रयोग किया जाता है। मतलब है कि बचने का कोई रास्ता न होने पर शत्रु के साथ जीवन-मरण की लड़ाई लड़ना। दूसरा अर्थ निकलता है कि गतिरोध से बाहर निकलने के लिए अंतिम प्रयत्न करना।

चिंग शिंग युद्ध में हान शिन ने दस हजार सैनिकों की सेना से चतुर युद्ध कला का इस्तेमाल कर दो लाख वाली दुश्मन सेना को पूरी तरह खत्म कर दिया और चीन के सैन्य इतिहास में एक शानदार मिसाल कायम की।

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